राजनीति एक बड़ी कला है इसके लिए शाम दाम भेद से काम करना पड़ता है और एक – एक शब्द तोलमोलकर बोला जाता है अगर गलत समय पर एक भी गलत शब्द निकल जाए तो वर्षों से की गई मेहनत पर पानी फिर जाता है राजनीतिज्ञ के संबंध में एक कहावत या भी है कि कुशल राजनीतिज्ञ गिरगिट की तरह रंग बदलता है और जो यह नहीं कर सकता वह कुशल राजनीतिज्ञ नहीं है ऐसी समाज में एक मान्यता है।
यहां अब किसी भूमिका में ना जाकर इशारा सूरत की सत्र न्यायालय में दायर याचिका का है जिसमें देश की शिर्ष राष्ट्रीय पार्टी के शिर्ष नेता की एवं सार्वजनिक एक टिप्पणी का है जिसमें इस नेता द्वारा सार्वजनिक स्थान पर एक वर्ग विशेष पर अपमानजनक टिप्पणी की एवं इस टिप्पणी को लेकर मानहानि का अभियोग चला अभियोग की विधिवत सुनवाई हुई।पश्चात अधिकतम दो वर्ष कारावास की सजा भी हुई यहां यह भी उल्लेख करना है कि इन शिर्ष नेता द्वारा पूर्व में भी इस तरह की टिप्पणी की जाती रही है जिसका संज्ञान सर्वोच्च न्यायालय ने लिया और माफी मांग कर जान छुड़ाई किंतु इससे कोई सबक नहीं चूंकि राजनेता चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुए हैं और दिल और दिमाग से आज भी वह स्वीकार करने को तैयार नहीं की हुकूमत उनकी नहीं,इस बदजुबानी की वजह से संसद की सदस्यता भी जा चुकी ,सरकारी बंगला भी छोड़ना पड़ा पर हम हैं कि मानते नहीं’
नेताओं से कभी त्रुटि वश गलत शब्दों का इस्तेमाल हो जाता है कभी जानबूझकर दूसरों को नीचा दिखाने के लिए किया जाता है परंतु असली नेता व जो समय देखकर भूल सुधार कर ले इसके लिए दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री का उदाहरण शिर्ष पर लिया जा सकता है ।कांग्रेस के नेता से फैसला दिए जाने से पूर्व भी खेद व्यक्त करने का अवसर था किंतु वे अड़े रहे बल्कि जमानत लेने के लिए भी पूरा शक्ति प्रदर्शन किया तीन राज्यों के मुख्यमंत्री इकट्ठा हो गए इसके साथ ही हजारों की भीड़ या तो सीधी सीधी अदालतों की अवमानना है इससे भी इनको निवेश फायदा नहीं हुआ बल्कि 23 अप्रैल 2023 तक का जमानत का समय मिला। आज जब या आलेख लिख रहा हूं तब तक अपील दाखिल नहीं हुई आंखिर यह क्या संदेश दे रहे हैं।
मुजफ्फरनगर में हुए मुशायरे में शायर राहत इंदौरी ने अपनी शायरी में कहा आधी मगरूर दरख्तों को पटक जाएगी बस वही शार्क बचेगी जो लचक जाएगी।इसी तरह की जो मूल शायरी मैंने अपने कॉलेज दिनों में पड़ी थी वह इस तरह थी उड़ा ले जाती आंधियां मगरूर दरख्तों को लचक जाती है साखे ……..
मुख्य उद्देश्य है यह है कि आंधियां बड़े बड़े पेड़ों को जड़ से उखाड़ देती है किंतु वनस्पति में सबसे कमजोर मुलायम घास है जो लचक कर भी अपने अस्तित्व को बचाए रखती है ।यही लचक राजनेता के लिए बड़ी धरोहर है इसकी वजह से वह बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान कर लेते हैं किंतु अगर इसकी राजनेता में कमी है तो उसकी राजनीति कहां जाएगी इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।मारुता की मानसिकता को पनपने में इर्द गिर्द के लोग चारकारों का भी बहुत योगदान होता है अधिकांश में लोग सिर्फ अपने अवसर की तलाश में रहते हैं अब हमें देखना है देश की इस शिर्ष राष्ट्रीय पार्टी एवं शिर्ष राजनेता का क्या हश्र होता है ।
लेखक: डा. डीडी मित्तल