दोस्ती की मिसाल -डॉक्टर डी डी मित्तल

देहरादून – आज फ्रेंडशिप डे है और इस दिन मैं अपने एक पुराने मित्र जो कि इस दुनिया में नहीं है को याद कर उनको श्रद्धांजलि देना चाहूंगा।यह दोस्ती की एक मिसाल भी है। यह प्रकरण जहां तक वर्ष मुझे याद है वर्ष 1994 का है ,जब कैपिटल मार्केट हर्षद मेहता प्रकरण के बाद क्रश हुआ था ,इसमें मैं बहुत बड़े घाटे का शिकार हुआ था और इस घाटे ने मेरी प्रॉपर्टी भी बिकवा दी इसके बावजूद भी मैं कर्जदार था।आप जानते है चलती का नाम गाड़ी है और ऐसे में अपने भी साथ छोड़ देते है ।यही मेरे साथ भी हुआ।अब मैं आता हूं अपनी मित्रता पर,उन दिनो मेरे मित्र अशोक कुमार IAS थे ,वे सुपर इंटेलिजेंट एवं अच्छे फिलॉसफर भी थे।इनसे मेरी बात अक्सर रोज ही हो जाती थी।मै आदतन एक आत्म सम्मानी व्यक्ति हु जिसे कुछ लोग अहंकारी भी कहते है।अतः इस वित्तीय घाटे से मुझे बहुत आघात हुआ और मैं बीमार हो गया।मेरा ज्वर चार पांच दिन यथावत रहा , डॉक्टर अनेक एंटीबायोटिक्स भी इस्तेमाल कर चुका था और आखिर में उनकें दवारा लीवर टेस्ट कराया ।इसी बीच यह घटना हुई, बच्चे दोनों बाहर शिक्षा ले रहे थे,मेरी पत्नी ने बहुत ही गंभीर होते हुए उस दिन मेरे स्थानीय रिश्तेदार को फोन किया और उन्होंने तुरंत आने का वादा किया किंतु वे नहीं आए,मैने उनसे भी कुछ धनराशि उधार ली थी। अशोक जी से जब तीन चार रोज वार्ता नहीं हुई तो अशोक जी का फोन आया तो पत्नी से पूछा,

भाभी जी मित्तल साहेब कहां है?
पत्नि : वो तो बीमार है और बुखार नहीं उतर रहा।
अशोक जी: आपने बताया क्यों नहीं?मै जानता हूं बुखार का कारण,आप चिंता ना करना।सायं मै आ रहा हूं और मेरे मित्र डॉ भट्ट ,जो उस समय मुलायम सिंह के डॉक्टर थे,को लेकर आऊंगा ।
यह सब मै लेटे लेटे सुन रहा था और उसी दिन शाम 7बजे के आसपास अशोक कुमार जी स्कूटर पर आए, हालांकि इस समय वे राज्यपाल के विशेष सचिव थे।

आते ही बोले… साले,यह नुकसान फायदा तो जीवन में चलता है,तुम बिस्तर पर क्यों पड़े हो,और तत्काल अपनी यूनियन बैंक ,की चेक बुक निकाली और ब्लैंक चेक पर साइन करते हुए बोले,यह मेरा सैलरी अकाउंट है,अपने आदमी से कहना कि सिर्फ खाते में रुपया 5000.00 छोड़ कर बाकी पैसे निकाल ले,और हां ,अगर फिर भी कुछ देनदारी हो,तो मेरे पास कुछ फिक्स डिपॉजिट है हम तुड़वा लेंगे।मै और पत्नी के बार बार मना करने पर भी वे चेक छोड़ गए और हमने उसका इस्तेमाल भी नहीं किया किंतु जीने की एक आशा देकर चले गए।

पत्नी के कहा ,भाई साहब आप स्कूटर से क्यों आए,आप नीली बत्ती की गाड़ी छोड़कर?

आप समझती है,मुझे ज्यादा समय देना था साथ ही मैं यहां अपने मित्र से मिलने आया हूं।

दूसरे दिन सुबह लीवर रिपोर्ट आ गई,लीवर इन्फेक्शन निकला, एंटीबायोटिक्स बदल दी गई,बुखार भी उतर गया।बिस्तर से उठते ही मैने जो प्रॉपर्टी थी ,बेचने का इस्तहार दिया और तुरंत पैसे लेकर देनदारी निबटा दी।इस कार्यवाही में एक हफ्ता का समय लगा।इसके तुरंत बाद मैने मित्र को चेक लोटाते उनका अभिवादन किया। आज जब मैं यह ब्लॉग लिख रहा हूं उनकी आत्मा कहीं दूर बैठे कह रहे हैं,साले तुम नहीं सुधरोगे।ॐ शांति।

About The lifeline Today

View all posts by The lifeline Today →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *