अश्लील सामग्री मुक्त भारत बनाने के लिए केंद्र लाए कड़ा कानून : प्रो.द्विवेदी

वेब जर्नलिस्ट एसोसिएशन के संवाद कार्यक्रम में ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा

भोपाल। भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी का कहना है कि अश्लील सामग्री मुक्त भारत बनाने के लिए केंद्र सरकार को कड़ा कानून लाने की आवश्यकता है। इसके लिए मीडिया और समाज के हर क्षेत्र के लोग आवश्यक दबाव बनाएं और जागरूकता पैदा करें।

वे आज वेब जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित वर्चुअल संवाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष आनंद कौशल, राष्ट्रीय महामंत्री अमित रंजन, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा.लीना सहित बड़ी संख्या में वेब जर्नलिस्ट और मीडिया विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया।

प्रो.द्विवेदी ने कहा कि यह डिजिटल समय है, डिजिटल माध्यमों से सूचना, शिक्षा और मनोरंजन प्राप्त हो रहा है। किंतु बाजार के खिलाड़ियों ने इस माध्यम को अश्लीलता फैलाने का भी माध्यम बना लिया है। इससे समाज में स्त्री के विरुद्ध अपराध और छोटी बच्चियों के साथ भी अमानवीय घटनाएं हो रही हैं। इसे रोका जाना चाहिए। समाज अश्लीलता के प्रसारकों की जगह सिर्फ जेल में होनी चाहिए।

सूचना और समाचार के अंतर को समझें…
प्रो. द्विवेदी ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि सूचना कोई भी दे सकता है , किंतु खबर या समाचार के साथ भरोसा जुड़ा हुआ है। संपादन और निश्चित प्रक्रिया से गुजर कर ही कोई सूचना ‘समाचार’ बनती है। एक समाचार में बहुत सी सूचनाएं शामिल हो सकती हैं। किंतु कोई भी समाचार संपादन और प्रोसेस के बाद ही बन सकता है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर संपादन मुक्त सूचना का अंबार है, ये लोग सूचना प्रदाता हो सकते हैं, पत्रकार नहीं। पत्रकारिता एक जिम्मेदारी भरा काम है। इसलिए सोशल मीडिया पर मचे धमाल के लिए पत्रकारिता को लांछित नहीं किया जाना चाहिए।

विश्वसनीयता और प्रामाणिकता जरूरी:
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति रहे प्रो.द्विवेदी ने कहा कि प्रामाणिकता और विश्वसनीयता मीडिया का मूलमंत्र है। खबरों की सत्यता परखे बिना उन्हें परोसना सामाजिक अपराध है। फेक न्यूज,हेट न्यूज, पेड न्यूज जैसे शब्दों से पत्रकारिता की उज्ज्वल परंपरा कलंकित होती है। उनका कहना था हम खबरें देने में पिछड़ जाएं पर पाठकों और दर्शकों का भरोसा न तोड़ें।

भारतीय भाषाओं का डिजिटल समय
प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि यह समय तीन ‘वी’ का है -वीडियो, वायस और वर्नाकुलर। डिजिटल समय ने हमें वैश्विक आकाश दिया है। आज हमारी भारतीय भाषाओं डिजिटल माध्यमों से वैश्विक प्रवास करते हुए प्रसिद्ध प्राप्त कर रही हैं। लिपि का संकट न होने के कारण हमारे गीत, संगीत, विचार, समाचार सब दुनिया भर में सुने और देखे जा रहे हैं।

हर तरफ डिजिटल का डंका..
डिजिटल मीडिया के महत्व को समझाते हुए कहा प्रो.द्विवेदी ने कहा कि अभी फिक्की की रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2023 में भारत में प्रिंट मीडिया का रेवेन्यू मात्र 9 प्रतिशत बढ़ा है तो डिजिटल मीडिया का रेवेन्यू 67 प्रतिशत बढ़ा है। देश में प्रिंट मीडिया के पाठकों में 13 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है तो डिजिटल मीडिया में 71 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2025 तक भारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या लगभग 98 करोड़ होने की संभावना है। अगर देश में 98 करोड़ स्मार्टफोन हैं तो समझिए डिजिटल मीडिया के 98 करोड़ उपभोक्ता पहले दिन से तैयार हैं।

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