पूर्व सीएम हरीश रावत ने देखा सपने में विकसित भारत का नक्शा

देहरादून। उत्तराखंड राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सपने में विकसित भारत का नक्शा देखा। उन्होंने आज अपने फेसबुक एकाउंट मे सपने के संबंध में पोस्ट भी किया। फेसबुक एकाउंट मे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने लिखा की शुक्रवार अर्थात 31 जनवरी की मध्य रात्रि के आस-पास अचानक मेरी नींद टूट गई, दो बार टूटी। सामान्य तौर पर ऐसा होता नहीं है। जब पहली बार नींद टूटी तो उससे पहले मैं, सपने में विकसित भारत का नक्शा देख रहा था। अचानक नक्शे में नारा लगाते हुये एक नारी का चेहरा उभरा, मैं साफ-साफ तो स्मरण नहीं कर पा रहा हूं, मगर वह कुछ-कुछ हमारी वर्तमान वित्त मंत्री से मिलता-जुलता था। महिला सफेद बालों वाली थी और कांजीवरम के सिल्क की साड़ी पहने हुए थी, विकसित भारत, विकसित भारत-विकसित भारत कहते हुए दिखाई दे रही थी। नींद टूटी तो अच्छा लगा, विकसित भारत की सोच आगे बढ़ने लगी। 2047 के विकसित भारत का परिदृश्य मेरे मानस पटल पर उभरा और मेरे मन ने कहा कि क्या तुम उस समय तक जिंदा रहने की सोच रहे हो? फिर स्वयं अंदर से उत्तर आया कि लालच तो है। फिर सोचने लगा कि विकसित भारत की बुनियाद कब से पड़ी? कभी नेहरू युग उभर करके आया। उस समय बड़े-बड़े कॉन्सेप्ट आगे बढ़े। बड़ी-बड़ी परियोजनाएं और उद्यम, सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित हुए। फिर इन्दिरा गांधी का चेहरा उभर करके आया। उस कालखंड की उपलब्धियां मानस पटल पर उभरने लगी। हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, नील क्रांति, औद्योगिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के प्रयास। जल, थल, नभ, तीनों क्षेत्रों में भारत की उपलब्धियां स्मरण होने लगी। आधी नींद में फिर #राजीव_गांधी जी का समय याद आया, किस तरीके से कंप्यूटर क्रांति, संचार क्रांति उस युग में आई और आधुनिक तकनीक के साथ हमारा जबरदस्त साक्षात्कार प्रारंभ हुआ। फिर धीरे-धीरे 1991 का वह दिन याद आया, जब तत्कालीन वित्त मंत्री माननीय डॉ. मनमोहन सिंह जी लोकसभा में अपना पहला बजट प्रस्तुत करने के लिए उठकर के खड़े हुये। मुझे स्मरण आया कि उस समय उनके बजट को लेकर के ढेर सारी उत्सुकताएं थी। यही उत्सुकता मुझको भी लोकसभा की दर्शक दीर्घा में लेकर के गई, जहां मैंने एक वाक्यांश सुना। विक्टर ह्यूगो का एक प्रसिद्ध वाक्य को कोट करते हुए डॉ. मनमोहन सिंह जी ने कहा कि दुनिया में जिस विचार का समय आ जाता है, उस विचार को कोई ताकत नहीं रोक सकती है। उन्होंने आर्थिक उदारीकरण का एक पूरा रोड मैप देश के सामने अपने वित्तीय प्रस्तावों के माध्यम से रखा। मुझे आशंका से घिरे हुए अर्जुन सिंह जी का भी चेहरा याद आया, फिर मुझे वह समय भी याद आया जब तिरुपति अधिवेशन में आर्थिक प्रस्तावों को रखते हुए हमारे कुछ नेतागणों ने उदारीकरण, मगर मानवीय चेहरे के साथ के उद्घोष को आगे बढ़ाया। फिर 2004 का वह समय याद आया जब देश कठिन वित्तीय परिस्थितियों से जूझ रहा था और डॉ मनमोहन सिंह जी प्रधानमंत्री बने और आर्थिक उदारीकरण की दिशा में भारत ने सशक्त पहलें प्रारंभ की। उस समय सरकार ने निरंतर यह कोशिश की कि उदारीकरण का लाभ वंचित लोगों को मिले। मनरेगा जिसको उस समय नरेगा कहा गया, नेशनल रूरल गारंटी एक्ट पार्लियामेंट ने पास किया। किसानों के उत्पादों की एम.एस.पी. में विशेष तौर पर, गेहूं, दलहन आदि की एम.एस.पी. में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
डॉ. मनमोहन सिंह जी का एक कथानक याद आया कि हमको यदि विश्व व्यापी मंदी से बचना है तो अपने उपभोक्ता के हाथ में ज्यादा से ज्यादा पैसे देने पड़ेंगे। मध्यम वर्ग के लिए करों आदि में कई तरीके की छूटें दी गई। किसानों का कर्ज माफ किया गया। कर्ज माफी और एम.एस.पी. की वृद्धि ने ग्रामीण भारत को साइकिल युग से मोटरसाइकिल युग में पहुंचा दिया। भारत में विशाल मध्य वर्ग अस्तित्व में आने लगा। 27 करोड़ लोग गरीबी से उभर करके ऊपर आए, केंद्र सरकार की सशक्त पहलों के माध्यम से भारत आगे बढ़ने लगा। तीन ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी का लक्ष्य भी सामने आया। मैं सोचने लगा कि आज जब हम विकसित भारत की बात कर रहे हैं तो विकसित राष्ट्र की श्रेणी में जो देश सम्मिलित हैं, उनमें पर कैपिटा इनकम क्या है? बहुत सर खपाने पर ध्यान आया कि $24000 (चौबीस हजार डॉलर) पर कैपिटा इनकम वाला देश ही विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आ सकता है। फिर मैंने अपने मन से कहां की आंकड़े तलाश करो कि भारत में पर कैपिटा इनकम कितनी है? उत्तर स्वभावत: मेरे मन में आया कि वह तो केवल $2400 (चौबीस सौ डॉलर) हैं, एक बहुत भारी गैप दिखाई दिया। फिर कुछ अर्थशास्त्रियों का एक कथानक याद आया। जिन्होंने कहा है कि यदि भारत लगातार पौने आठ प्रतिशत से ऊपर विकास दर प्राप्त करता है तो, 25 साल में हम विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। आधी नींद में ही मैंने अपने मन से सवाल किया कि इस समय मेरे भारत की विकास दर क्या है? मुझे अपने आप से उत्तर मिला कि साढ़े छः प्रतिशत है, मैं थोड़ी चिंता में पड़ गया। आर्थिक असमानता का दृश्य मेरे सामने उभर कर बार-बार आने लगा। देश में आर्थिक असमानता कितनी बढ़ी है? अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है, मगर दूसरी तरफ गरीबी भी बढ़ रही है। निरन्तर बढ़ती जीएसटी जन्य महंगाई के कारण लोगों की क्रय शक्ति घट गई है। मेरे मानस पटल पर बार-बार मध्यम वर्ग व वेतन भोगियों की मांगे उभरने लगी। मध्यम वर्ग कई तरीके की सुविधाओं व छूटों की मांग कर रहा है। दूसरी तरफ कॉरपोरेट सेक्टर ग्रोथ रेट एक्सीरिलेट करने के लिए तर्क दे रहा है कि हमें कॉरपोरेट टैक्स में छूट दी जाए। आम व्यक्ति कह रहा है कि मुफ्त के राशन के युग से मुझे कब बाहर निकलोगे? बड़ा सा तार्किक सवाल है? तभी एक हांफता हुआ नौजवान कहता हुआ दिखाई दे रहा है उसे रोजगार नहीं मिल रहा है। आर्थिक असमानता, घटते हुए रोजगार मेरी चिंता को और बढ़ा रहे हैं। मैं लगातार बेचैनी में करवटें बदल रहा हूं। मैं महसूस कर रहा हूं कि यह चिंताएं महंगाई के साथ मिलकर के मुझे और थका रही हैं, नींद मुझ पर हावी होती जा रही है। फिर मुझे दिल्ली चुनाव प्रचार में एक-दूसरे से जोर-सोर से प्रतियोगिता करते हुए नेतागण दिखाई दे रहे हैं, जो कह रहे हैं कि हमारा माल ले लो, हम तुमको यह देंगे, हम तुमको फलां चीज देंगे। एक लंबी फेहरिस्त हर पार्टी मतदाताओं के सामने रख रही है और मतदाता कह रहा है, कुछ दो, न दो लेकिन मेरे नमक, तेल, दाल, सब्जी, चप्पल, मेरे बच्चे की किताब, शिक्षा और चिकित्सा स्वास्थ्य के खर्च को घटा दो। उसको यहां तक ले आओ कि वह मेरी सीमा के अंदर आ जाय। यह सोचते-सोचते मुझे नींद आ गई। सुबह थोड़ी जल्दी मेरी नींद खुली मगर झटके से खुली, आंख मलते-मलते मुझे विकसित भारत की चौखट के स्थान पर विकसित उत्तराखंड दिखाई देने लगा और एक सजा-धजा नौजवान जोर-जोर से आवाज लगा रहा है “यूसीसी ले लो, यूसीसी ले लो”। मैं कुछ और आगे देखता उस से पहले मुझे सहायक ने बिजली जला दी और आगे का दृश्य ओझल हो गया।

About The lifeline Today

View all posts by The lifeline Today →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *