नई दिल्ली – केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आज नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) नियमों को अधिसूचित कर दिया है। इसके तहत शरणार्थियों को देश की नागरिकता मिल सकेगी। जानकारी के मुताबिक, सीएए के नियम जारी होने के बाद अब पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल सकेगी।देश में लोकसभा चुनाव से पहले ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ (सीएए) के नियम लागू करने को लेकर विपक्ष सरकार पर सवाल उठा रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो इस मामले में केंद्र पर सीधे-सीधे हमलावर हो गई हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियमों के तहत भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देश, जिनमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश शामिल हैं, से आए गैर मुस्लिम प्रवासी लोगों के लिए भारत की नागरिकता लेने के नियम आसान हो जाएंगे। इन छह समुदायों में हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी शामिल हैं।
नागरिकता संशोधन विधेयक 11 दिसंबर, 2019 को संसद द्वारा पारित किया गया था। एक दिन बाद ही इस विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति मिल गई थी। सीएए के जरिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदायों से संबंधित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता लेने में आसानी होगी। ऐसे अल्पसंख्यक, 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश कर चुके हों। इससे पहले भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए किसी भी व्यक्ति को कम से कम 11 साल तक भारत में रहना जरूरी था। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के अंतर्गत इस नियम को आसान बनाया गया है। नागरिकता हासिल करने की अवधि को 1 से 6 साल किया गया है।सीएए को लेकर देश में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिली थीं। कई राजनीतिक दलों ने भी इसका विरोध किया था। उस वक्त केंद्र सरकार इसे लागू करने का मन बना चुकी थी, लेकिन कोरोना के चलते सीएए अधर में लटक गया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 200 से अधिक जनहित याचिकाएं दायर की गई थीं। इन सबके बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह यह कहते रहे कि सीएए हर सूरत में लागू किया जाएगा। कोविड-19 महामारी के कारण इस अधिनियम को लागू करने में देरी हुई है। जो लोग सोचते हैं कि ऐसा नहीं होगा, वे गलत साबित होंगे।सीएए, किसी व्यक्ति को खुद नागरिकता नहीं देता है। इसके जरिए पात्र व्यक्ति, आवेदन करने के योग्य बनता है। यह कानून उन लोगों पर लागू होगा, जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए थे। इसमें प्रवासियों को वह अवधि साबित करनी होगी कि वे इतने समय में भारत में रह चुके हैं। उन्हें यह भी साबित करना होगा कि वे अपने देशों से धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए हैं। वे लोग उन भाषाओं को बोलते हैं, जो संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हैं। उन्हें नागरिक कानून 1955 की तीसरी सूची की अनिवार्यताओं को भी पूरा करना होगा। इसके बाद ही प्रवासी आवेदन के पात्र होंगे।