( डा.डी.डी मित्तल )
अक्सर मैने पाया है की इंसान जीवन की हाफादाफी और भौतिकवाद की दौड़ में अपने को और अपने रिश्तों को भूलता जा रहा है या भूल चुका है कहें तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अक्सर स्कूल कॉलेज जमाने के मित्रो अथवा कार्यालय के कुछ मित्रो के बारे में भी बात करे तो यही पाता हूं कि रिश्तों की बुनियाद खिशकते जा रही है। कभी कभी जब पुराने मित्र या रिश्तेदार के फोन की घंटी बजती है तो सबसे पहले जहन में यही आता है कि शायद कोई काम से ही फोन किया है ।ऐसा क्यों ?
इंसान जिंदगी के अन्तिम पड़ाव पर जब पहुंचता है तो देखता है कि वें बच्चों के आसपास ही रहें ,तो पाता है कि बेटी शादी के बाद अपना घर परिवार संभाल रही है,बेटे नोकरी में है तो बाहर निकल जाते है या कोई व्यापार आदि में है तो वे घर,परिवार ,व्यापार में व्यस्त हो जाते है और वे मां बाप भाग्यशाली है जब देर से लौटकर बेटा/ बेटी घर आकर माता,पिता से पूंछ ले कि आप कैसे है?किंतु अधिकांश घरों में वरिष्ठ मां बाप को या तो पुराना फर्नीचर समझ लिया जाता है या ऐसा व्यवहार होता है कि वे अपना रास्ता दूसरा देख लेते है ।भारत मेआज यह समस्या पाश्चात देशों से ज्यादा विकट हो रही है और सरकार का ध्यान इस और ना के बराबर है।आज मैं ट्रेन से यात्रा कर रहा हूं तो मेरे जहन में एक पुराना संस्मरण आया है ,जो आपके साथ साझा कर रहा हूं।यह संस्मरण शायद कुछ अन्य लोगो को भी जीने का साहस दे।
बात कुछ दिन पूर्व कि है जब मैं अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी में गया था। मेरा जन्म स्थान राजस्थान के एक छोटे से गांव से है और रिश्तेदार भी राजस्थान से है किंतु अब दिल्ली में है। राजस्थान में मीणा जाति है ,जो कि अनुसूचित जनजाति(सिड्यूल्ड ट्राइब्स) में आती है।राजस्थान के रिवाज के अनुसार जब लड़का या लड़की की शादी होती है तो लड़का या लड़की का मामा शादी के पहले दिन भात लेकर आता है,यह शादी का बड़ा पर्व होता है ,इसमें शादी वाले के तमाम रिश्तेदार,समाज सम्मलीत होता है तथा लड़के /लड़की का मामा यानी उनकी मां का भाई लड़के/लड़की की मां को चुनरी ऊढाता है तथा उसके बाद तिलक करके सभी रिश्तेदारों, पट्टीदारों को तिलक के साथ (सिरोपाव)रुपया तथा नारियल भी दिया जाता है।यह बड़ा सम्मान है, साथ ही इस बात का भी द्योतक है कि इनका इतना बड़ा समाज है।यहां आप यह पढ़कर शायद सोच रहे है कि इसमें कौन सी कहानी है।अब मैं आता हुं मुख्य बात पर।आज जिस बच्चे की शादी होने जा रही थी वह चार्टर्ड एकाउंटेंट बन गया था तथा करीब 45 वर्ष पूर्व लड़के की मां छोटी बच्ची थी और राजस्थान के एक गांव में मामा मामी के साथ रहती थी और उनके पड़ोस में यहीं एक मीणा दंपति रहते थे जिनकी आर्थिकी उस बहुत अच्छी नहीं थी तथा इनके दो लड़के ही थे,कोई लड़की नही थी।
राजस्थान में जाति प्रथा हमेशा रही किंतु रिश्तों में जातपात का भेद नहीं किया जाता था ,मुझे विदित है कि अक्सर उम्र दराज लोग वह किसी भी जाति का हो ,उसको नाम से संबोधित ना कर , ताऊ,बाबा से संबोधित करते थे और यही रिश्तों की असली बुनियाद होती थी।लड़का जिसकी शादी थी,(निलेश काल्पनिक नाम) की मां (निशा काल्पनिक नाम)जब बच्ची थीं , मीणा परिवार जिनके लड़की नहीं थी सिर्फ दो लड़के थे ,निशा को अपनी लड़की की ही मानते थे।बाद में निशा की शादी हो गई और निशा के भी दो लड़के हो गए,तथा दिल्ली में रहने लग गए,दोनो बच्चे अब सी ए बन गए थे पिताजी ने दिल्ली में ही अपना व्यापार कर लिया था ,दूसरी तरफ मीणा परिवार के दोनों लड़के पढ़ लिखकर अच्छी सरकारी नोकरी में आ गए और दोनों जयपुर शहर में रहने लग गए।आज जब शादी में भात की रश्म पूरी की जा रही थी उसमें मैं सपत्नीक शामिल हुए, जहां हम बैठे थे ,वहीं करीब करीब अस्सी वर्ष की एक दंपति राजस्थानी वेशभूषा में बैठे हुए थे, उनके पास ही उनके दोनों बेटे एवं उनकी बहुएं भी बैठी थी । जब चुनरी उढाने की रस्म चालू हुई तो पहले निशा के सगे भाई ने चुनरी ऊढाई ,इसके बाद मीणा दंपति के दोनो लडको ने राजस्थान में चुनरी की क्वालिटी से मामा की हैसियत भी में देखी जाती है और मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं की मीणा दंपति की चुनरी बहुत बेहतर थी।इसी बीच मैने निलेश के छोटे भाई से उन मीणा दंपति के बारे पूछा तो उसने बताया कि ये उम्र दराज उनके नानी,नाना है और उनके दोनों लड़के, बहू मामा ,मामी है । इसके बाद तिलक की बारी आई इसमें में इस परिवार ने एक एक व्यक्ति को बड़ी सिद्धत से तिलक किया और (सिरपाव) रुपया व नारियल दिया और पूछा भी जा रहा था कि कोई रह तो नही गया,यहीं नहीं दो लोगो का तिलक ,नारियल भी अलग से यह कहते हुए दिया कि कोई भूल जाय तो दे देना यह सारी प्रक्रिया मै विस्मय से देख रहा था।जब रस्म पूरी हुई तब मैने निलेश से विस्तार पूछा तो उसने पूरा इतिहास बताया और यह भी बताया की रक्षा बंधन पर मामा लोग अक्सर राखी बंधाने आते है और ना आने पर राखी भेजी जाती है और यही नहीं ,जब भी हम राजस्थान जाते हैं तो इनसे बिना मिले नही लोटते, यही शायद रिश्तों की खूबी है। मुझे आज यह सब सुनकर संतोष हुआ कि हमारे रिश्ते अभी भी कुछ बचे है , काश हमारी आने वाली पीढ़ी इसे संजोकर रखे।