यूसीसी बिल लाकर जनता से किया वादा पूरा किया : सीएम

देहरादून। सीएम धामी की अध्यक्षता में आज प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक हुई। इसमें यूसीसी का प्रस्ताव लाया गया। इस दौरान कैबिनेट ने नियमावली के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। सीएम धामी ने कहा कि 2022 में हमारी सरकार ने यूसीसी बिल लाकर जनता से किया वादा पूरा किया था। तब से हम इसकी सारी प्रक्रियाएं पूरी कर इसे जल्द से जल्द लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।यह उत्तराखंड के लिए गौरव की बात है कि हमारा प्रदेश सबसे पहले यूसीसी लागू करेगा। सब तैयारियां पूरी हो गई हैं। जल्द हम इसे लागू करेंगे। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का वेबपोर्टल 21 जनवरी को पहली बार प्रदेशभर में एक साथ उपयोग में आएगा। फिलहाल यह कवायद सरकार के अभ्यास (मॉक ड्रिल) का हिस्सा होगी। इसके बाद यूसीसी को लागू किया जा सकता है। मॉक ड्रिल में यूसीसी का प्रशिक्षण ले रहे रजिस्ट्रार, सब रजिस्ट्रार और अन्य अधिकारी अपने-अपने कार्यालयों में यूसीसी पोर्टल पर लॉगइन करेंगे। उसके जरिये विवाह, तलाक, लिव इन रिलेशन, वसीयत आदि सेवाओं के पंजीकरण का अभ्यास करेंगे। सुनिश्चित करेंगे कि यूसीसी लागू होने के बाद आम लोगों को उससे संबंधित सेवाएं मिलने में कोई तकनीकी बाधा तो नहीं आएगी। मॉक ड्रिल से सरकार, विशेष समिति और प्रशिक्षण टीम अपनी-अपनी तैयारियों को परख सकेंगी।
घोषणा से कानून बनने तक का सफर
12 फरवरी 2022 को विस चुनाव के दौरान सीएम धामी ने यूसीसी की घोषणा की।
मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली कैबिनेट बैठक में यूसीसी लाए जाने पर फैसला।
मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति बनी।
समिति ने 20 लाख सुझाव ऑफलाइन और ऑनलाइन प्राप्त किए।
2.50 लाख लोगों से समिति ने सीधा संवाद किया।
02 फरवरी 2024 को विशेषज्ञ समिति ने ड्राफ्ट रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी।
06 फरवरी को विधानसभा में यूसीसी विधेयक पेश हुआ।
07 फरवरी को विधेयक विधानसभा से पारित हुआ।
राजभवन ने विधेयक को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा।
11 मार्च को राष्ट्रपति ने यूसीसी विधेयक को अपनी मंजूरी दी।
यूसीसी कानून के नियम बनाने के लिए एक समिति का गठन।
नियमावली एवं क्रियान्वयन समिति ने हिंदी और अंग्रेजी दोनों संस्करणों में आज 18 अक्तूबर 2024 को राज्य सरकार को नियमावली साैंपी।
20 जनवरी 2025 को नियमावली को कैबिनेट की मंजूरी मिली।
यूसीसी लागू होगा तो यह आएंगे बदलाव
सभी धर्म-समुदायों में विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक ही कानून।
26 मार्च 2010 के बाद से हर दंपती के लिए तलाक व शादी का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, महानगर पालिका स्तर पर पंजीकरण की सुविधा।
पंजीकरण न कराने पर अधिकतम 25,000 रुपये का जुर्माना।
पंजीकरण नहीं कराने वाले सरकारी सुविधाओं के लाभ से भी वंचित रहेंगे।
विवाह के लिए लड़के की न्यूनतम आयु 21 और लड़की की 18 वर्ष होगी।
महिलाएं भी पुरुषों के समान कारणों और अधिकारों को तलाक का आधार बना सकती हैं।
हलाला और इद्दत जैसी प्रथा खत्म होगी। महिला का दोबारा विवाह करने की किसी भी तरह की शर्तों पर रोक होगी।
कोई बिना सहमति के धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का अधिकार होगा।एक पति और पत्नी के जीवित होने पर दूसरा विवाह करना पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा।
पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय पांच वर्ष तक के बच्चे की कस्टडी उसकी माता के पास रहेगी।
संपत्ति में बेटा और बेटी को बराबर अधिकार होंगे।
जायज और नाजायज बच्चों में कोई भेद नहीं होगा।
नाजायज बच्चों को भी उस दंपती की जैविक संतान माना जाएगा।
गोद लिए, सरगोसी से असिस्टेड री प्रोडेक्टिव टेक्नोलॉजी से जन्मे बच्चे जैविक संतान होंगे।
किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के संपत्ति में अधिकार संरक्षित रहेंगे।
कोई व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को वसीयत से अपनी संपत्ति दे सकता है।
लिव इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए वेब पोर्टल पर पंजीकरण अनिवार्य होगा।
युगल पंजीकरण रसीद से ही किराया पर घर, हॉस्टल या पीजी ले सकेंगे।
लिव इन में पैदा होने वाले बच्चों को जायज संतान माना जाएगा और जैविक संतान के सभी अधिकार मिलेंगे।
लिव इन में रहने वालों के लिए संबंध विच्छेद का भी पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
अनिवार्य पंजीकरण न कराने पर छह माह के कारावास या 25 हजार जुर्माना या दोनों का प्रावधान होंगे।

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