नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने बाल पोर्न मामले में सोशल मीडिया मध्यस्थों (फेसबुक, व्हाट्सएप) से उचित सावधानी बरतने के लिए कहा। इन सावधानियों में न केवल ऐसी सामग्री को हटाना शामिल है बल्कि पॉक्सो अधिनियम और नियमों के तहत निर्दिष्ट तरीके से पुलिस को ऐसी सामग्री की तत्काल रिपोर्ट करना भी शामिल है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा, हमारा विचार है कि किसी मध्यस्थ ने यदि उचित सावधानी नहीं बरती और पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया तो वह आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत किसी तीसरे पक्ष की सूचना, डाटा या संचार लिंक के लिए उत्तरदायित्व से छूट का दावा नहीं कर सकता।कोर्ट ने यह भी कहा कि सोशल मीडिया मध्यस्थों को पॉक्सो के तहत किसी अपराध के घटित होने या घटित होने की आशंका की सूचना नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रन(एनसीएमईसी) को देने के अलावा पॉक्सो की धारा 19 के तहत निर्दिष्ट अथॉरिटी यानी विशेष किशोर पुलिस इकाई या स्थानीय पुलिस को भी इसकी सूचना देनी होगी। पीठ ने कहा, संरक्षण का लाभ उठाने के लिए मध्यस्थ को किसी भी तरह से तीसरे पक्ष के डाटा या सूचना के प्रसारण, प्राप्ति या संशोधन की शुरुआत करने में शामिल नहीं होना चाहिए। इसके अलावा आईटी अधिनियम के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय उचित कृत्य (कार्य) का पालन करना और केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित अन्य दिशा-निर्देशों का भी पालन करना आवश्यक है।