मेरे बड़े बड़े भइया मेरे लिए पिता तुल्य रहे,जब तब तब नोक झोंक , दोनों की सामान्य बात थी, एक राशिफल, दोनों ही तुनक मिजाज किंतु जब भी रोया तो कंधा भी वही मिला।मेरे सिवाय उनकी कमी शायद ही कोई परिवार में समझे।इतना विद्वान पढ़ने का शोक मैने जीवन में नही देखा।जब लाइट नहीं होती थी तो तकिया लगाकर लालटेन की लाइट में साहित्य,उपन्यास पढ़ते रहते थे और सिगरेट फूंकते थे। एक वाकया है कि एकबार रात्रि में पढ़ते हुए आधा तकिया जल गया,जब तपीस लगी तो पता चला।यह तकिया मेरा ही था और मैं बहुत नाराज हुआ था उस दिन।
मेरी स्वर्गीय माताजी के देहांत उपरांत मेरे बड़े भाई तुल्य और मित्र उस समय के काबिना मंत्री मेरे आवास पर आए वे स्वयं में बहुत विद्वान है।करीब 2 से 3 घंटे आवास पर रुकेऔर बड़े भैया से साहित्यिक डिस्कसन हुआ ,हिंदी,अंग्रेजी,बंगला भाषा साहित्य पर।
अंत में जब उन्होंने भाई साहब से पूछा की आप क्या करते है ? इस पर भैया ने कहा की उनका व्यापार है।इस मंत्री जी का कहना था कि मै विश्वास नहीं कर सकता की व्यापारी आदमी इतना विद्वान,साहित्यिक हो सकता है।आज उनको शरीर छोड़े छः वर्ष हो गए।
अंतिम समय से करीब पन्द्रह दिन पहले उनका फोन आया और पारिवारिक एक पुराने मसले पर चर्चा की।उनको किसी प्रकरण में मेरा असत्य होने का अंदेशा था,उन्होंने वही व्यक्त किया।शायद ईश्वर ने मुझे साहस दिया और मैंने स्वीकार किया।इस पर उन्होंने कहा माइंड ना करना ,आजकल मुझे पुरानी पुरानी बाते याद आती है और भूल जाता हुं।और अंतिम अपनी डायरी में लिखा था”आज दीनू से लंबी वार्ता हुई,वार्ता कर अच्छा लगा” वे हमेशा अपनी डायरी लिखा करते थे।
करीब पंद्रह दिन बाद में मैं सपत्नीक माउंट आबू कांफ्रेंस में था तब वे लखनऊ के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती थे,भतीजे का फोन आया,वार्ता भी कराई,मैने पूछा कि अभी चल दु तो उन्होंने कहा कार्यक्रम पूरा कर आ जाओ,यही उनसे अंतिम वार्ता थी।दो दिन बाद वे वेंटीलेटर पर आ गए।जब पहुंचा तो कुछ बचा नही था किंतु डॉक्टर की सलाह पर रात्रि को वहीं रुककर परमात्मा से प्रार्थना की ,किंतु दूसरे दिन सुबह ही मृत घोषित कर दिए।इसके बाद मैने वो भी देखा जब वे सभी के दुख सुख में शरीक होते थे,किंतु इस वक्त उनमें कुछ गिने चुने लोग थे ।आज मैं यह ब्लॉग जब आपको शेयर कर रहा हूं,तो मै अपने अश्रुपात नही रोक पा रहा।
शत शत नमन है,इस पवित्र आत्मा को। ॐ शांति।